पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत: साथियों स्वागत है आपका आस्था दरबार में और आज मै आपको बताने वाला हूँ पंचदेव पूजन मन्त्र एवं पूजा विधि के बारे में जिसकी सहायता से आप पंचदेव पूजा आसानी से अपने घर पर कर सकते हैं | तो चलिए देखते है किस विधि से करनी चाहिए पंचदेव पूजन एवं पंचदेव पूजन मन्त्र संस्कृत में दिया गया है और हर एक मन्त्र के साथ होने वाली क्रियाओं का हिंदी में उल्लेख किया गया है |
पंचदेव पूजन में किस देवता की पूजा होती है ?
अर्थात- सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु-ये पंचदेव कहे गये हैं। इनकी पूजा सभी कार्यों में करनी चाहिय |
प्रतिष्ठित मूर्ति, शालग्राम, बाणलिङ्ग, अग्नि और जल में आवाहन करना मना है। इसकी जगह पुष्पाञ्जलि दे।
पञ्चायतन देवताओं के स्थान के भी कुछ अपने नियम हैं। इसी नियम के अनुसार इने स्थापित करना चाहिए । इस नियम का उल्लङ्कन करने से हानि हो सकती है। इस पंचदेव पूजन मंत्र संस्कृत में पूजा विधि विष्णु पंचायतन पंचदेव पूजन के उदाहरणार्थ लिखा गया है तथा अन्य पञ्चायतनों के नाम एवं प्रकार भी नीचे लिखे गए हैं | पंचदेवताओं में से जिस देवता को केंद्र में रख कर पूजन करना हो उस पंचायतन के नाममंत्र से उसके पूजन करने चाहिए | पांचो पंचायतन के नाम निम्न प्रकार से हैं -
(१) गणेश पंचायतन- ॐ गणेशविष्णुशिवदुर्गासूर्येभ्यो नमः।
(२) शिव पंचायतन- ॐ शिवविष्णुसूर्यदुर्गागणेशेभ्यो नमः।
(३) देवी पंचायतन- ॐ दुर्गाविष्णुशिवसूर्यगणेशेभ्यो नमः।
(४) सूर्य पंचायतन- ॐ सूर्यशिवगणेशदुर्गाविष्णुण्यो नमः।
(५) विष्णु पंचायतन- ॐ विष्णुशिवगणेशसूर्यदुर्गाभ्यो नमः।
पंचदेव पूजन से पूर्व प्रारंभिक क्रिया
वैसे तो हर व्यक्ति को प्रतिदिन पंचदेव पूजा अवश्य करनी चाहिये। यदि वेद के मन्त्र से अभ्यस्त न हों, तो आगम मन्त्र से, यदि वे भी अभ्यस्त न हो तो नाम-मन्त्र से यदि यह भी सम्भव न हो तो बिना मन्त्र के ही जल, चन्दन आदि चढ़ाकर पूजा करनी चाहिये। पंचदेव पूजन पंचोपचार विधि से भी कर सकते है |
यहाँ पूजा की सामान्य विधि दी जा रही है। साथ साथ नाम-मन्त्र भी दिया गया है। जिनसे श्लोको का उच्चारण नही हो रहा हो तो , वे नाम मन्त्र से ही पंचदेवताओं का षोडशोपचार पूजन करें।
पूजागृह में प्रवेश करने से पहले बाहर दरवाजे पर ही पूर्वोक्त प्रकार से आचमन करले और तीन तालियाँ बजाये और विनम्रता के साथ पूजागृह में प्रवेश करे। ताली बजाने के पहले निम्नलिखित विनियोग सहित मन्त्र पढ़ ले
विनियोग-
अपसर्पन्त्विति मन्त्रस्य वामदेव ऋषिः, शिवो देवता, अनुष्टुप छन्दः, भूतादिविनोत्सादने विनियोगः ।
भूतोत्सादन मन्त्र-
ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूतले स्थिताः । ये भूता विघ्नकरिस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।।
पश्चात् देवताओं का ध्यान करे, साष्टाङ्ग प्रणाम करे। बाद में निम्नलिखित विनियोग और मन्त्र पढ़कर आसनपर बैठकर उसको जल से पवित्र करे।
आसन पवित्र करने का विनियोग एवं मन्त्र
ॐ पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः, सुतलं छन्दः, कूमों देवता, आसनपवित्रकरणे विनियोगः।
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ।।
घण्टा पूजन मंत्र
घण्टा को चन्दन और फूल से अलङ्कत कर निम्नलिखित मन्त्र पढकर प्रार्थना करे
आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं च रक्षसाम् । कुरु घण्टे वरं नादं देवता स्थान संनिधौ ॥
प्रार्थनाके बाद घण्टा को बजाये और यथास्थान रख दे। 'घण्टास्थिताय गरुडाय नमः।' इस नाम मन्त्र से घण्टे मे स्थित गरुडदेव का भी पूजन करे।
शङ्ख पूजन मन्त्र
शङ्ख मे दो दर्भ या दूब, तुलसी और फूल डालकर 'ओम्' कहकर उसे सुवासित जल से भर दे। इस जल को गायत्री-मन्त्र से अभिमन्त्रित कर दे। फिर निम्नलिखित मन्त्र पढकर शङ्ख मे तीर्थो का आवाहन करे
पृथिव्यां यानि तीर्थानि स्थावराणि चराणि च । तानि तीर्थानि शङ्केऽस्मिन् विशन्तुब्रह्मशासनात् ॥
तब 'शंखाय नमः, चन्दनं समर्पयामि' कहकर चन्दन लगाये और 'शंखाय, पुष्पं समर्पयामि' कहकर फल चढ़ाये। इसके बाद निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर शङ्ख को प्रणाम करें
शुद्धिकरण मन्त्र
शङ्ख मे रखी हुई पवित्री से निम्नलिखित मन्त्र पढकर अपने ऊपर तथा पूजा की सामग्रियों पर जल छिड़कें
ॐ अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
हाथ मे पुष्प-अक्षत आदि लेकर प्रारम्भ मे भगवान गणेश जी का स्मरण करना चाहिये
गणेश स्मरण मन्त्र
सुमुखश्चैक दन्तश्च कपिलो गजकर्णकः । लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥ धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः । द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छणुयादपि ॥ विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः । लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः उमा महेश्वराभ्यां नमः। वाणी हिरण्य गर्भाभ्यां नमः। शचीपुरन्दराभ्यां नमः। मातृपितृ चरण कमलेभ्यो नमः। इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो नमः ।ग्राम देवताभ्यो नमः । वास्तुदेवताभ्यो नमः। स्थान देवताभ्यो नमः । एतत्कर्म प्रधान देवताभ्यो नमः ।सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः ।
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः । मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ।। कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा । ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः॥ अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः ।अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा ॥ सर्वे समुद्राः सरित स्तीर्थानि जलदा नदाः । आयान्तु देवपूजार्थ दुरितक्षय कारकाः ॥ गड़े च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ! नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥
इसके बाद निम्नलिखित मन्त्र से उदकुम्भ की प्रार्थना करे
देवदानवसंवादे मथ्यमाने महोदधौ । उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ ! विधृतो विष्णुना स्वयम्॥ त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः । त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः ॥ शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः । आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः ॥ त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदाः । त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं कर्तु मीहे जलोद्भव ! सांनिध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
उसके पश्चात संकल्प करना चाहिए |
अथ पञ्चदेवता पूजन मंत्र।
सबसे पहले ध्यान करे
श्री विष्णु का ध्यान मंत्र
उद्यत्कोटिदिवाकराभमनिशं शङ्ख गदां पङ्कजं चक्रं बिभ्रत मिन्दिरा वसुमती संशोभिपार्श्वद्वयम् ।कोटी राङ्गदहार कुण्डलधरं पीताम्बरं कौस्तुभै र्दीप्तं विश्वधरं स्ववक्षसि लसच्छी वत्सचिह्नं भजे ॥
भावार्थ: उदीयमान करोड़ो सूर्य के समान प्रभातुल्य, अपने चारो हाथो मे शङ्ख, गदा, पद्म तथा चक्र धारण किये हुए एवं दोनो भागो मे भगवती लक्ष्मी और पृथ्वीदेवी से सुशोभित, किरीट, मुकुट, केयूर, हार और कुण्डलो से समलङ्कत, कौस्तुभमणि तथा पीताम्बर से देदीप्यमान विग्रहयुक्त एवं वक्ष स्थलपर श्रीवत्सचिह्न धारण किये हुए भगवान् विष्णका मै निरन्तर स्मरण-ध्यान करता हूँ।
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशु मृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्। पद्मासीनं समन्तात् स्तुत ममर गणै र्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिल भयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ।।
शिव का ध्यान मंत्र
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि, ॐ शिवाय नमः।
भावार्थ: चाँदी के पर्वत के समान जिनकी श्वेत कान्ति है, जो सुन्दर चन्द्रमा को आभूषण-रूप से धारण करते है, रत्नमय अलङ्कारो से जिनका शरीर उज्ज्व ल है, जिनके हाथो मे परशु, मृग, वर और अभय मुद्रा है, जो प्रसन्न है, पद्म के आसनपर विराजमान हैं, देवतागण जिनके चारो ओर खड़े होकर स्तुति करते है, जो बाघ की खाल पहनते है, जो विश्वके आदि जगत्की उत्पत्ति के बीज और समस्त भयो को हरनेवाले है, जिनके पाँच मुख और तीन नेत्र हैं, उन महेश्वर का प्रतिदिन ध्यान करे।
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणिसमर्पयामि, ॐ श्रीगणेशाय नमः।
गणेश का ध्यान
खर्व स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं प्रस्यन्दन्मद गन्धलुब्ध मधु पव्या लोल गण्डस्थलम् ।दन्ता घात विदारिता रिरुधिरैः सिन्दूरशोभाकरं वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धि प्रदं कामदम् ॥
भावार्थ: जो नाटे और मोटे शरीरवाले है, जिनका गजराज के समान मुख और लम्बा उदर है, जो सुन्दर है तथा बहते हए मदकी सुगन्ध के लोभी भौंरो के चाटने से जिनका गण्डस्थल चपल हो रहा है, दाँतो की चोट से विदीर्ण हुए शत्रुओ के खून से जो सिन्दूर की-सी शोभा धारण करते है, कामनाओ के दाता और सिद्धि देनेवाले उन पार्वती के पुत्र गणेशजी की मै वन्दना करता हूँ।
रक्ताम्बुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं । भानुं समस्त जगता मधिपं भजामि । पद्म द्वया भय वरान् दधतं कराब्जै माणिक्य मौलि मरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम् ॥
सूर्य का ध्यान
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि, ॐ श्रीसूर्याय नमः।
भावार्थ: लाल कमल के आसनपर समासीन, सम्पूर्ण गुणो के रत्नाकर, अपने दोनो हाथो मे कमल और अभयमुद्रा धारण किये हुए, पद्मराग तथा मुक्ता फल के समान सुशोभित शरीर वाले, अखिल जगत्के स्वामी, तीन नेत्रो से युक्त भगवान् सूर्यका मै ध्यान करता हूँ।
दुर्गा का ध्यान मंत्र
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि, ॐ श्रीदुर्गायै नमः।
भावार्थ: जो सिंह की पीठपर विराजमान है, जिनके मस्तकपर चन्द्रमाका मुकुट है. जो मरकतमणि के समान कान्तिवाली अपनी चार भुजाओ मे शत, चक्र, धनुष और बाण धारण करती है, तीन नेत्रोसे सुशोभित होती है, जिनके भिन्न-भिन्न अङ्ग बाँधे हुए बाजूबद, हार, कङ्कण, खनखनाती हुई करधनी और रुनझुन करते हुए नूपुरो से विभूषित है तथा जिनके कानो मे रत्नजटित कुण्डल झिलमिलाते रहते हैं, वे भगवती दुर्गा हमारी दर्गति दूर करनेवाली हो। अब हाथमे फूल लेकर आवाहन के लिये पुष्पाञ्जलि दे।
पुष्पाञ्जलि मंत्र
'ॐ विष्णुशिवगणेशसूर्यदुर्गाभ्यो नमः, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।'
यदि पञ्चदेव की मूर्तियाँ न हो तो अक्षतपर इनका आवाहन करे ।
आवाहन मंत्र
ॐ विष्णुशिवगणेशसूर्यदुर्गाभ्यो नमः, आवाहनार्थे पुष्पं समर्पयामि।
(पुष्प समर्पण करे)
आसन मंत्र
अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्। कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं परिगृह्यताम्॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, आसनार्थे तुलसीदलं समर्पयामि। (तुलसीदल समर्पण करे।)
पाद्य मंत्र
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि।
(जल अर्पण करे।)
अर्घ्य मंत्र
गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्थ्य - सम्पादितं मया । गृह्णन्त्वय॑ महादेवाः प्रसन्नाश्च भवन्तु मे ॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, हस्तयोरर्घ्य समर्पयामि।
(गन्ध, पुष्प, अक्षत मिला हुआ अर्घ्य अर्पण करे ।)
आचमन मंत्र
कपूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु शीतलम्। तोयमाचमनीयार्थ गृह्णन्तु परमेश्वराः ॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
(कर्पूरसे सुवासित सुगन्धित शीतल जल समर्पण करे।)
स्नान मंत्र
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, स्नानीयं जलं समर्पयामि।
(शुद्ध जल से स्नान कराये।)
आचमन मंत्र
स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
(स्नान करानेके बाद आचमन के लिये जल दे।)
पञ्चामृत स्नान मंत्र
पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करान्वितम्। पञ्चामृतं मयाऽऽनीतं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि।
(पञ्चामृत से स्नान कराये।)
गन्धोदक स्नान मंत्र
मलयाचलसम्भूतचन्दनेन विमिश्रितम्। इदं गन्धोदकं स्नानं कुङ्कमाक्तं नु गृह्यताम्॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, गन्धोदकं समर्पयामि ।
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, गन्धोदकं समर्पयामि ।
(मलय चन्दनसे सुवासित जलसे स्नान कराये।)
गन्धोदकस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानम्-
(गन्धोदक-स्नान के बाद शुद्ध जल से स्नान कराये।)
शुद्धोदक स्नान मंत्र
मलयाचलसम्भूतचन्दनाऽगरुमिश्रितम् । सलिलं देवदेवेश ! शुद्ध स्ना नाय गृह्यताम् ।।
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(शुद्धोदक से स्नान कराने के बाद आचमन करने के लिये पुन जल चढ़ाये।)
आचमन
शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
वस्त्र और उपवस्त्र
शीतवातोष्णसंत्राणे लोकलज्जानिवारणे। देहालङ्करणे वस्त्रे भवद्भ्यो वाससी शुभे॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, वस्त्रमुपवस्त्रं च समर्पयामि।
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, वस्त्रमुपवस्त्रं च समर्पयामि।
(वस्त्र और उपवस्त्र चढ़ाने के बाद आचमन के लिये जल चढ़ाये।)
आचमन
वस्त्रोपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
यज्ञोपवीत
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
(यज्ञोपवीत चढ़ाने के बाद आचमन के लिये जल चढ़ाये।)
आचमन
यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
चन्दन
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, चन्दनानुलेपनं समर्पयामि।
(सुगन्धित मलय चन्दन लगाये।)
पुष्पमाला
(मालती आदिके पुष्प चढ़ाये।)
तुलसीदल और मञ्जरी
तुलसी हेमरूपां च रत्नरूपां च मञ्जरीम् । भवमोक्षप्रदां रम्यामर्पयामि हरिप्रियाम् ॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, तुलसीदलं मञ्जरी च समर्पयामि।
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः । आज्ञेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ।
ॐविष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, धूपमाघ्रापयामि ।
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया। दीपं गृह्णन्तु देवेशास्त्रै लोक्यति मिरापहम्॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, तुलसीदलं मञ्जरी च समर्पयामि।
(तुलसीदल और तुलसी-मञ्जरी समर्पण करे।)
भगवानके आगे चौकोर जलका घेरा डालकर उसमे नैवेद्य की वस्तुओ को रखे तब धूप-दीप निवेदन करे।
धूप
ॐविष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, धूपमाघ्रापयामि ।
(धूप दिखाये)
दीप
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, दीपंदर्शयामि ।
(दीप दिखाये तथा हाथ धोकर नैवेद्य निवेदन करे)
नैवेद्य
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, नैवेद्यं निवेदयामि।
(नैवेद्य निवेदित करे।)
उत्तरापोऽशनार्थ हस्तप्रक्षालनार्थ मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि।
नैवेद्य देनेके बाद भगवान का ध्यान करे (मानो भगवान् भोग लगा रहे हैं)। ध्यान के बाद आचमन करनेके लिये जल चढ़ाये और मुखप्रक्षालन के लिये तथा हस्त-प्रक्षालन के लिये जल दे।
ऋतुफल
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, ऋतुफलानि समर्पयामि।
मध्ये आचमनीयं उत्तरापोऽशनं च जलं समर्पयामि ।
मध्ये आचमनीयं उत्तरापोऽशनं च जलं समर्पयामि ।
(ऋतुफल अर्पण करे इसके बाद आचमन तथा उत्तरापोऽशनके लिये जल दे।)
ताम्बूल
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि।
(सुपारी, इलायची, लवंगके साथ पान चढ़ाये।)
दक्षिणा
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, दक्षिणां समर्पयामि ।
(दक्षिणा चढ़ाये)।
आरती
कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्। आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मां वरदो भव ॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, आरार्तिकं समर्पयामि।
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, आरार्तिकं समर्पयामि।
(कर्पूरकी आरती करे और आरती के बाद जल गिरा दे।)
शङ्ख-भ्रामण
शङ्खमध्ये स्थितं तोयं भ्रामितं केशवोपरि । अङ्गलग्नं मनुष्याणां ब्रह्म हत्यां व्यपोहति ॥
जलसे भरे शङ्ख को पाँच बार भगवान के चारो ओर घुमाकर शङ्ख को यथास्थान रख दे । भगवानका अंगोछा भी घुमा दे। अब दोनो हथेलियो से आरती ले। हाथ धो ले। शङ्ख के जल को अपने ऊपर तथा उपस्थित लोगोपर छिड़क दे।
निम्नलिखित मन्त्र से चार बार परिक्रमा करे (परिक्रमा का स्थान न हो तो अपने आसनपर ही चार बार घूम जाय)।
प्रदक्षिणा
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि।
(मन्त्र पढ़कर प्रदक्षिणा करे।)
मन्त्र पुष्पाञ्जलि
श्रद्धया सिक्तया भक्त्या हार्दप्रेम्णा समर्पितः । मन्त्र पुष्पाञ्जलिश्चायं कृपया प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे। सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटीयुगधारिणे नमः ॥
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
(पुष्पाञ्जलि भगवानके सामने अर्पण कर दे।)
नमस्कार
ॐ विष्णुपञ्चायतनदेवताभ्यो नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।
(प्रार्थनापूर्वक नमस्कार करे।)
चरणामृत-पान
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम् । विष्णुपादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ॥
(चरणामृत को पात्रमे लेकर ग्रहण करे। सिरपर भी चढ़ा ले।)
क्षमा-याचना
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन । यत्पूजितं मया देव ! परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ॥
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम । तस्मात् कारुण्यभावेन रक्ष मां परमेश्वर ।।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ॥
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम । तस्मात् कारुण्यभावेन रक्ष मां परमेश्वर ।।
(इन मन्त्रो का श्रद्धापूर्वक उच्चारण कर अपनी विवशता एवं त्रुटियो के लिये क्षमा-याचना करे।)
प्रसाद-ग्रहण
भगवान पर चढ़े फूल को सिरपर धारण करे। पूजा से बचे चन्दन आदि को प्रसादरूप से ग्रहण करे । अन्त मे निम्नलिखित वाक्य पढ़कर समस्त कर्म भगवान्को समर्पित कर दे
ॐ तत्सद् ब्रह्मार्पणमस्तु । ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः।
(पंचदेव पूजन इति)
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poojavidhi
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जवाब देंहटाएंGanesh ji pooja pehle hona chahiye to chaturth sthan par kyu
Aapne ye bhi nahi bataya ki vishnu bhagwan ki poojan to Tamra patra me hona hai ya pittal patra me
जय श्री राधे राधे🙏
जवाब देंहटाएंPDF me upload kare
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया तैयार किया है।
जवाब देंहटाएंपीडीएफ तो नहीं मिला।
कोपी पेइस्ट कर के पढा।
अभिनंदन।
उपयोगी जानकारी दे दी गई है।।