कर्मपात्र पूजन एवं तिलक धारण आदि || karmpatra poojan tilak dharan etc..

poojan thali

||श्री गणेशाय नमः||


पत्नी सहित यजमान नित्यक्रिया संपन्न कर शुभ मूहूर्त में पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख अपने आसन पर बैठें | रक्षा दीप जला कर रख दें तथा तिलक धारण , ग्रंथि बंधन के पश्चात कर्मपात्र पूजन करें |

अथ कर्मपात्र पूजन

अङ्कुश मुद्रा बनाकर समुद्र एवं तीर्थादि क अवाहन् करें |

गङ्गे च यमुने चैव
 गोदावरी सरस्वती  
|


नर्मदे सिन्धु कावेरी
जलेस्मिन सन्निधिं कुरु 
||

ॐ अपां पतये वरुणाय नम: | सर्वोपचारार्थे गंधाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि नमस्करोमि |

पवित्री करण ( शरीर शुद्धि )

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा
 सर्वावास्थांग गतोपिवा 
|
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं
सबाह्याभ्यंतर: शुचिः 
||

|ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु |  पुण्डरीकाक्ष: पुनातु  पुण्डरीकाक्ष: पुनातु |



आचमन 

निम्न्त्रो के द्वारा ३ बार आचमन करें -

ॐ केशवाय नमः | ॐ नारायणाय नमः | ॐ माधवाय नमः |


आचमन के पश्चात दाहिने हाथ के अंगूठे के मूल भाग से, ' ॐ हृशीकेशाय नमः | कह कर ओठों को पोछ कर हाथ धो लेना चाहिए | तत्पश्चात निम्नलिखित मंत्र से पवित्री धारण करें -

पवित्री धारण 

पवित्री धारण में यजमान अपने अनामिका ऊंगली में कुशा की बनी हुई पवित्री का धारण करे, यदि कुश उपलब्ध नहीं हो तो स्वर्ण मुद्रिका धारण कर सकते हैं |

'पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्व: प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण
 सूर्यस्य रश्मिभिः |तस्य ते पवित्र पते पवित्र पूतस्य यत्काम: पुनेतच्छकेयम || 

आसन शुद्धि 


 आचमनी में जल लेकर विनियोग करें -

ॐ पृथ्वीति मंत्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषि: सुतलं छंद:
 कूर्मो देवता आसनोंपवेशने विनियोग: |

मंत्र - 
ॐ ह्रीं आधार शक्तये नम: |
 ॐ  कं कम्ब्लासनाय नम: | 
ॐ  विं विमलासनाय नम: |
ॐ  पं  परमसुखासनाय नम: | 
 ॐ कूर्माय नम: |
 ॐ अनंताय नम: |

शिखा बंधन -

 निम्न मंत्र से यजमान अपनी शिखा को बाँध लें |

ॐ चिद्रुपिणि महामाये ,
 दिव्य तेज: समन्विते |


तिष्ठ देवी शिखा मध्ये ,
 तेजो वृद्धिं कुरुष्व में ||

भष्म धारण 

इस मंत्र से यजमान यथास्थान  भष्म धारण करें -

ॐ त्र्यायुषं जमदग्ने: ( ललाटे )
ॐ कश्यपस्य 
त्र्यायुषं ( ग्रीवायां ) |
ॐ जद्देवेषु ( बाहुमूले )
ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषम् ( इति हृदि ) ||

मङ्गल तिलक धारण 

इस मंत्र से यजमान तिलक  धारण करें -


स्वस्ति न इन्द्रो वृद्ध श्रवा:
स्वस्ति न पूषा विस्ववेदा:
|


स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमि:
स्वस्ति नो वृहस्पति दधातु
|| 

घण्टा पूजन 
 घंटा को चन्दन और पुष्प आदि से अलंकृत कर निम्न लिखित मंत्र पढ़ कर प्रार्थना करे -
आगमार्थम तू देवानां
 गमनार्थं तू रक्षसाम
|


कुरु घंटे वरम नादं
देवता स्थान संनिधौ
||

प्रार्थना के बाद घंटा को बजाये और यथा स्थान रख दें इस नाम मंत्र से घंटे में स्थित गरुड़देव का पूजन करें |

मंत्र-  
घंटास्थिताय गरुडाय नमः सर्वोपचारार्थे 
गंधाक्षत समर्पयामि | पूजयामि | नमस्करोमि |

धुप पात्र पूजन 

ॐ गन्धर्व दैवात्याय धुप पात्राय नमः|
सर्वोपचारार्थे गंधाक्षत पुष्पाणि  समर्पयामि ||

शंख पूजन 

शंख में दो दर्भ या दूब, तुलसी और फुल डालकर ||  || कहकर उसे सुवासित जलसे भरदें | तथा इस जल को गायत्री-मंत्र  से अभिमंत्रित करदें | फिर निम्नलिखित मंत्र पढ़कर शंख में तीर्थों का आवाहन करें -

पृथिव्याम यानि तीर्थानि
 स्थावराणि
 चराणि च |


तानि तीर्थानि शंखेस्मिन
 विशन्तु ब्रह्म शासनात
||

इसके बाद शंखाय नमः,' चन्दनम समर्पयामि ' कहकर चन्दन लगाएं और ' शंखाय नमः ,
पुष्पं समर्पयामि ' कहकर फूल चढ़ाए | इसके बाद निम्नलिखित मंत्र को पढ़कर शंख को प्रणाम करें |
त्वम् पुरा सागरोत्पन्नो
 विष्णुना विधृत: करे
|


निर्मित: सर्वदेवैश्च
 पांचजन्य
  ! नमोस्तुते ||

शङ्ख गायत्री  -  ॐ ह्रीं पाञ्चजन्याय विद्महे पावमानाय् धीमहि | तन्नो शङ्ख: प्रचोदयात् ||

दीप पूजन 

अग्नि र्ज्योति र्ज्योतिरग्निः स्वाहा
सूर्यो ज्योति र्ज्योति: 
सूर्य: स्वाहा | 

अग्निर्वर्चो  ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्यो वर्चो 
ज्योतिर्वर्चः स्वाहा ||
ज्योति: सूर्य: सूर्यो ज्योति: स्वाहा ||

दीपस्थ देवतायै नमः सर्वो पचारार्थे गंधाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि | पूजयामि | नमस्करोमि |


भो दीप देवरुपस्त्वम 
कर्म साक्षी हविघ्नकृत |


यावत् कर्म समाप्ति: स्यात्
 तावत्वम सुस्थिरो भव ||





दीप पूजन हो जने के बाद यजमान हाथ में फूल लेकर गणेश जी का स्मरण करें, तथा  स्वस्तिवाचन का श्रवण करना चाहिए .... 

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6 टिप्पणियाँ

आस्था दरबार से जुड़ने के लिए धन्यवाद ||
||जय श्री राधे ||

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