|| स्वस्तिवाचन ||
स्वस्तिवाचन: किसी भी यज्ञादि महोत्सवों, पूजा-अनुष्ठानों अथवा नवरात्रपूजन, शिवरात्रि में शिव-पूजन, पार्थिव-पूजन, रुद्राभिषेक, सत्यनारायण पूजन, दीपावली-पूजन आदि कर्मो में प्रारम्भ में स्वस्तिवाचन अनिवार्य रूप से करना चाहिए।
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पूजा से पहले पात्रों को क्रम से यथास्थान रखकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसनपर बैठकर तीन बार आचमन करना चाहिये
ॐ नारायणाय नमः ।
ॐ माधवाय नमः ।
आचमन के पश्चात् दाहिने हाथ के अंगूठे के मूलभाग से
'ॐ हृषीकेशाय नमः,
ॐ गोविन्दाय नमः'
कहकर ओठों को पोंछकर हाथ धो लेना चाहिये । तत्पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से पवित्री धारण करे-
पवित्री धारणम्-
प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण
पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः ।
तस्य ते पवित्रपते पवित्र
पूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम्।'
पवित्री धारण करने के पश्चात् प्राणायाम करे।
इसके बाद बायें हाथ में जल लेकर निम्न मन्त्र पढ़ते हुए अपने दाहिने हाथ से अपने ऊपर और पूजा सामग्री पर छिड़कना चाहिये -
सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु |
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु |
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।
तदनन्तर पात्र में अष्टदल-कमल बनाकर यदि गणेश-अम्बिका की मूर्ति न हो तो सुपारी में मौली लपेटकर अक्षत पर स्थापित कर देने के बाद हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर स्वस्त्ययन पढ़ना चाहिये।
अथ स्वस्तिवाचन मंत्र
यजमान हाथ में पुष्प लेकर गणेश अम्बिका का ध्यान करें --
ॐ आनोभद्रा: क्रतवो यन्तु विस्वतो
दब्धासो अपरीतास उद्भिद:।
देवानो यथा सदमिद वृधे
असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे।।
देवानां भद्रा सुमतिर्रिजुयताम देवाना
ग्वंग रातिरभि नो निवार्ताताम।
देवानां ग्वंग सख्यमुपसेदिमा वयम
देवान आयु: प्रतिरन्तु जीवसे।।
तान पूर्वया निविदा हूमहे वयम
भगं मित्र मदितिम दक्षमस्रिधम।
अर्यमणं वरुण ग्वंग सोममस्विना
सरस्वती न: सुभगा मयस्करत ।।
तन्नोवातो मयोभूवातु भेषजं
तन्नमाता पृथिवी तत्पिता द्यौ: ।
तद्ग्रावान: सोमसुतो मयोभूवस्त
दस्विना श्रुनुतं धिष्ण्या युवं ।।
तमीशानं जगतस्तस्थुखसपतिं
धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम ।
पूषा नो यथा वेद सामसद वृधे
रक्षिता पायुरदब्ध: स्वस्तये ।।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्ध श्रवा:
स्वस्ति न पूषा विस्ववेदा: ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमि:
स्वस्ति नो वृहस्पति दधातु।।
पृषदश्वा मरुत: प्रिश्निमातर:
शुभं यावानो विदथेषु जग्मय:।
अग्निजिह्वा मनव: सूरचक्षसो
विश्वे नो देवा अवसागमन्निह।।
भद्रं कर्णेभि: शृणुयाम देवा
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ग्वंग सस्तनू
भिर्व्यशेमहि देवहितं यदायु:।।
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा
यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम् ।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति
मानो मध्या रीरिषतायुर्गन्तो:।।
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्ष्म
दितिर्माता स पिता स पुत्र:।
विश्वेदेवा अदिति: पञ्चजना
अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्
द्यौ: शान्ति रन्तरिक्ष् ग्वंग शान्ति: पृथिवी
शान्ति राप: शान्ति रोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म
शान्ति: सर्व ग्वंग शान्ति: शान्तिरेव
शान्ति: सामा शान्तिरेधि।।
यतो यत: समीहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शं न: कुरु प्रजाभ्यो भयं न: पशुभ्य: ।।
सुशान्तिर्भवतु
श्री मन्महागणाधिपतये नमः।
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:।
उमामहेश्वराभ्यां नम:।
वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नं:।
शचिपुरन्दराभ्यां नम:।
इष्टदेवताभ्यो नम:।
कुलदेवताभ्यो नम:।
ग्रामदेवताभ्यो नम:।
वास्तुदेवताभ्यो नम:।
स्थानदेवताभ्यो नम:।
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम:।
ॐ सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री मन्महागणाधिपतये नम:।
सुमुखश्चैकदन्तश्च
कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो
विघ्ननाशो विनायक:।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो
भालचन्द्रो गजानन:।
द्वद्शैतानि नामानि
यः पठे च्छ्रिणुयादपी।।
विद्यारंभे विवाहे च
प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव
विघ्नस्तस्य न जायते।।
शुक्लाम्बरधरं देवं
शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्
सर्व्विघ्नोपशान्तये।।
अभिप्सितार्थ सिद्ध्यर्थं
पूजितो य: सुरासुरै:।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै
गणाधिपतये नम:।।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये !
शिवे ! सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बिके !
गौरी नारायणि नमोस्तुते।।
सर्वदा सर्वकार्येषु
नास्ति तेषाममङ्गलम्।
येषां हृदयस्थो भगवान्
मङ्गलायतनो हरि:।।
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव,
ताराबलं चन्द्रबलं तदेव ।
विद्याबलं दैवबलं तदेव,
लक्ष्मीपते तेन्घ्रियुगं स्मरामि।।
लाभस्तेषां जयस्तेषां
कुतस्तेषां पराजय:।
येषामिन्दीवरश्यामो
हृदयस्थो जनार्दन:।।
यत्र योगेश्वर: कृष्णो
यत्र पार्थो धनुर्धर:।
तत्र श्रीर्विजयो भूति
र्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।
अनन्यास्चिन्तयन्तो मां
ये जना: पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां
योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
स्मृतेःसकल कल्याणं
भाजनं यत्र जायते।
पुरुषं तमजं नित्यं
व्रजामि शरणं हरम्।।
सर्वेष्वारंभ कार्येषु
त्रय:स्त्री भुवनेश्वरा:।
देवा दिशन्तु नः सिद्धिं
ब्रह्मेशानजनार्दना:।।
विश्वेशम् माधवं दुन्धिं
दण्डपाणिं च भैरवम्।
वन्दे कशी गुहां गंगा
भवानीं मणिकर्णिकाम्।।
वक्रतुण्ड् महाकाय
सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु में देव
सर्वकार्येषु सर्वदा
ॐ श्री गणेशाम्बिका भ्यां नम: ।
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स्वस्तिवाचन हाथ में लिया हुआ पुष्प गणेश अम्बिका की मूर्ति या सुपारी से बनाए हुए भगवान पर चढ़ा दे इसके पश्चात " दांये हाथ में पुष्प , कुश,तील,जौ,जल,द्रव्य लेकर संकल्प करना चाहिए |"
jay hooo
जवाब देंहटाएंYed
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण जय श्री राधे
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंBahut achcha age bhi jankari bhejte then
जवाब देंहटाएंअति सुंदर सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंबहुत अचछा
जवाब देंहटाएंBahut sundar
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजय श्री राधे
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