एकादशी, प्रदोष व्रत रहस्य विशेष |
एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat) एवं त्रयोदशी, प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) रहस्य विशेष हर महीने दो एकादशी होती है।एक शुक्ल पक्ष दूसरी कृष्ण पक्ष
दोनों पक्षों में एक- एक एकादशी तिथि को व्रत
करने की शास्त्र निर्णय है। ठीक ऐसे ही त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत का विधान है।
30 तिथियों में सबसे ज्यादा पवित्र हैं एकादशी और प्रदोष, चमत्कार जानेंगे तो व्रत अवश्य करेंगे ।आईये अब जानते हैं एकादशी व्रत एवं प्रदोष व्रत के रहस्यों
के बारे में एकादशी व्रत एवं प्रदोष व्रत के चमत्कारी रहस्य-
एकादशी और प्रदोष तिथि के चमत्कारी लाभ
प्रत्येक तिथि और वार का हमारे मन और मस्तिष्क पर गहरा असर
पड़ता है। इस असर को जानकर ही कोई कार्य किया जाए तो चमत्कारिक लाभ प्राप्त किया जा
सकता है। तिथि और वार का निर्धारण सैकड़ों वर्षों की खोज और अनुभव के आधार पर किया
गया है। इस तिथि के प्रभाव को जानकर ही व्रत और त्योहारों को बनाया गया। जन्मदिन का
सही समय या तारीख तिथि ही है।
30 तिथियों के नाम निम्न हैं:- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा
(पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ),
सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी
(बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)। पूर्णिमा से अमावस्या
तक 15 और फिर अमावस्या से पूर्णिमा तक 30 तिथि होती है। तिथियों के नाम 16 ही होते
हैं। उक्त सभी तिथियों का अलग अलग महत्व है।
लेकिन हम बताना चाहते हैं, एकादशी और प्रदोष तिथि को किए
वाले जाने व्रत का महत्व...
और पढ़ें-
राशिफल अगस्त 2020 – बुध का सिंह राशि में गोचर
हरतालिका तीज : जानें व्रत का मुहूर्त, पूजा विधि और पौराणिक महत्व!
एकादशी और प्रदोष तिथि क्या है :
Ekadashi ग्यारस अर्थात ग्यारह तिथि को एकादशी और तेरस या त्रयोदशी
तिथि को "Pradosh प्रदोष" कहा जाता है। प्रत्येक शुक्ल और कृष्ण पक्ष में यह दोनों ही तिथियां
दो बार आती है। हिन्दू धर्म में एकादशी को विष्णु से तो प्रदोष को शिव से जोड़ा गया
है। हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है। आपका ईष्ट कोई भी आप यह दोनों ही व्रत रख सकते हैं।
जरूरी नहीं है कि प्रदोष व्रत रखते वक्त शिव की ही उपासना करें।
उक्त दोनों तिथियों पर व्रत रखने के चमत्कारिक लाभ
उक्त दोनों तिथियों पर व्रत रखने का लाभ : दोनों ही तिथियां
चंद्र से संबंधित है। जोभी व्यक्ति दोनों में से एक या दोनों ही तिथियों पर व्रत रखकर
मात्र फलाहार का ही सेवन करना है उसका चंद्र कैसा भी खराब हो वह सुधरने लगता है।
अर्थात
शरीर में चंद्र तत्व में सुधार होता है। माना जाता है कि चंद्र के सुधार होने से शुक्र
भी सुधरता है और शुक्र से सुधरने से बुध भी सुधर जाता है। दोनों ही व्रतों का संबंध
चंद्र के सुधारने और भाग्य को जाग्रत करने से है अत: किसी भी देव का पूजन करें।
चंद्रमा की स्थिति के कारण व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक
स्थिति खराब या अच्छी होती है। चंद्रमा की स्थिति का प्रत्येक व्यक्ति पर असर पड़ता
ही पड़ता है। ऐसी दशा में एकादशी का ठीक से व्रत रखने पर, सही तरीके से व्रत रखने पर
आप चंद्रमा के खराब प्रभाव को, नकारात्मक प्रभाव को रोक सकते हैं।
चंद्रमा ही नहीं यहां तक की बाकी ग्रहों के असर को भी आप बहुत हद तक कम कर सकते हैं। एकादशी के व्रत का प्रभाव आपके मन और शरीर दोनों पर पड़ता है।
चंद्रमा ही नहीं यहां तक की बाकी ग्रहों के असर को भी आप बहुत हद तक कम कर सकते हैं। एकादशी के व्रत का प्रभाव आपके मन और शरीर दोनों पर पड़ता है।
एकादशी के व्रत से आप अशुभ संस्कारों को भी नष्ट कर सकते
हैं। पुराणों अनुसार जो व्यक्ति एकादशी करता रहता है वह जीवन में कभी भी संकटों से
नहीं घिरता और उनके जीवन में धन और समृद्धि बनी रहती है।
विजया एकादशी से भयंकर से भयंकर परेशानी से छुटकारा पा सकते हैं। इससे आप अपने शत्रुओं को भी परास्त कर सकते हैं। सभी का महत्व उनके नाम से ही प्रकट होता है।
विजया एकादशी से भयंकर से भयंकर परेशानी से छुटकारा पा सकते हैं। इससे आप अपने शत्रुओं को भी परास्त कर सकते हैं। सभी का महत्व उनके नाम से ही प्रकट होता है।
एकादशी का रहस्य
एकादशी सब व्रतों में प्रमुख व्रत होते हैं नवरात्रि के, पूर्णिमा
के, अमावस्या के, प्रदोष के और एकादशी के। इसमें भी सबसे बड़ा जो व्रत है वह एकादशी
का है। माह में दो एकादशी होती है। अर्थात आपको माह में बस दो बार और वर्ष के 365 दिन
में मात्र 24 बार ही नियम पूर्वक व्रत रखना है।
26 एकादशियां: चैत्र माह में कामदा और वरूथिनी एकादशी, वैशाख
माह में मोहिनी और अपरा, ज्येष्ठ माह में निर्जला और योगिनी, आषाढ़ माह में देवशयनी
एवं कामिका, श्रावण माह में पुत्रदा एवं अजा, भाद्रपद में परिवर्तिनी एवं इंदिरा, आश्विन
माह में पापांकुशा एवं रमा, कार्तिक माह में प्रबोधिनी एवं उत्पन्ना, मार्गशीर्ष में
मोक्षदा एवं सफला, पौष में पुत्रदा एवं षटतिला, माघ में जया एवं विजया, फाल्गुन में
आमलकी एवं पापमोचिनी, अधिकमास (तीन वर्ष में एक बार) में पद्मिनी एवं परमा एकादशी।
वर्ष में 24 एकादशी जबकि प्रत्येक तीसरे वर्ष 26 एकादशी होती है।
इस वर्ष दो आश्विन मास होंगे , जिसमें एक अधिकमास तो दूसरा
शुद्ध मास होगा। इस वर्ष 26 एकादशी होगी।
एकादशी व्रत एवं त्रयोदशी, प्रदोष व्रत रहस्य विशेष के बारे में अपनी प्रतिक्रिया कमेंट में अवस्य लिखें |
ज्योतिर्विद् राजेन्द्र जी
लोअर परेल मुम्बई
Tags:
vratkatha