Chaurchan |
Chauth Chandra: भाद्रपद-मास शुक्ल पक्ष के चतुर्थी तिथि को चौठचंद्र व्रत और पूजा की जाती है । मिथिला में यह पर्व चौठीचान तथा चौरचन के नाम से भी जाना जाता है। पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को आंगन में चावल के पिठार से अरिपन( चित्रित किया गया) दिया जाता है।
Chaurchan Puja की विधि क्या है
पूजा के समय गोलाकार चंद्र मंडल पर केला के पत्ते पर पकवान, 'मधुर पायस' आदि प्रसाद के रूप में रखे जाते हैं। मुकुट सहित चंद्रमा के मुख के अरिपन पर केले के पत्ता को स्थापित कर रोहिणी नक्षत्र सहित चतुर्थी तिथि में भगवान चंद्र का सफेद फूल (भेंट, कुन्द, तगर आदि) से पश्चिम दिशा में पूजा करें।
परिवार के सदस्य के अनुसार पकवान युक्त डाली और वासनयुक्त दही को अरिपन पर रखें। केला, दीप युक्त मिट्टी का कलश, लावन आदि को अरिपन पर रखें। एक एक पकवान एवं फल युक्त डाली, दही, केला को उठाकर सिंह प्रसेन मंत्र का उच्चारण करते हुए यथा-
चौरचन मंत्र
दधिशङ्खतुषाराभं
क्षीरोदार्णवसंभवम् ।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ॥
नैवेद्य समर्पित करें। प्रत्येक व्यक्ति फल हाथ में लेकर उसी मंत्र से चंद्रमा का दर्शन कर प्रणाम करें।
क्यों करना चाहिए चौठचंद्र व्रत
पुराण के वर्णन के आधार यह कथा प्रसिद्ध है- भगवान् चंद्रमा को इसी दिन कलंक लगा था। इस कारण से इस दिन चंद्रदर्शन का निषेध बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रदर्शन करने से मिथ्या (झूठा) कलंक लगता है।
अंत: इस दोष के निवारण के लिए-
" सिहः प्रसेनमवधीत सिंहो जाम्बवता हतः ।
सुकुमार
मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ॥ "
चौठचंद्र स्यमंतक मणि की कथा
तदनुसार श्री कृष्ण भगवान् को एक बार मिथ्या कलंक लग गया था कि श्री कृष्ण ने प्रसेन नामक यादव को मारकर स्यमंतक नामक मणि चुरा कर रखे हैं। परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया था। तदनंतर श्री कृष्ण प्रसेन को ढूंढने के लिए वन में गए।
इसीलिए पूर्व में जो बताई विधि है उसके अनुसार पूजन करें । प्रत्येक व्यक्ति एक एक फल हाथ में लेकर चंद्रमा भगवान् का दर्शन करें। दक्षिणा उत्सर्ग करने के बाद चंद्र मंडल पर रखा हुआ प्रसाद को उपस्थित पुरुष वर्ग उसको चारों तरफ से गोलाकार पंक्तिबद्ध कर केले के पत्ते पर अलग अलग से खीर को बांट दें "(इसको मिथिला में मरर भांगना कहा जाता है, जो उस नैवेद्य को कुशा से काटा जाता है) " इसके बाद प्रसाद ग्रहण करें।
Chaurchan Puja 2020: क्यों नहीं करना चाहिए चौरचन के दिन चंद्र दर्शन के बरे में अपना विचार हमें कमेन्ट में जरूर लिखें
आचार्य सुजीत झा
मुंबई
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