बगलामुखी साधना क्या है और कैसे करें बगलामुखी की उपासना?

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बगलामुखी साधना: साथियों एकबार फिर से स्वागत है आप सभी का आस्था दरबार में और आज हम आपको बताएँगे बगलामुखी साधना से जुडी हर एक बात, जो बगलामुखी साधको के लिए बहोत ही महत्वपूर्ण है  - 

जिसमें हम समझनेवाले हैं - बगलामुखी साधना क्या है ?, बागलामुखी साधना के विधि विधान क्या है ? एवं बगलामुखी हवन  कैसे करें?   


बगलामुखी साधना परिचय 

बगलामुखमिव मुखं यस्याः साबगलामुखी अर्थात् बगला के समान मुखवाली देवी।
'बगला सर्वसिद्धिदा' के अनुसार यह निश्चित है कि संयम-नियमपूर्वक तन्निष्ठ हो बगलामुखी के पाठ-पूजा तथा मंत्रानुष्ठान करने वाले उपासकों को 'सर्वान् कामान-वाप्नुयात्' -सर्वाभीष्ट की सिद्धि अवश्यमेव होती है

क्योंकि शत्रु-विनाश, मारणमोहन, उच्चाटन और वशीकरण के लिए बगलामुखी के बढ़कर अन्य कोई देवता नहीं है। मुकदमे में विजय प्राप्ति के लिए तो यह रामबाण है।

बताये गए विधि के अनुसार पूजा-पाठजप तथा मंत्रानुष्ठान से बगला-उपासकों को सर्वथा समृद्धि जरूर मिलता है। इसका संशोधन-सम्पादन भी मैंने बड़ी सावधानी के साथ किया है, फिर भी मानव-दोष से सम्भव त्रुटियों के लिए क्षमा-प्रार्थी हूँ। 

भक्तिपूर्वक पाठ-पूजा के द्वारा पाठकर्ता तथा यजमान दोनों का कल्याण और शीघ्र फलप्राप्ति भी निश्चित है। 

इसके लिए महाभाष्यकार ने कहा है-

"एकः शब्दः स्वरतो वर्णतो वा मिथ्या प्रयुक्तो न तमर्थमाह।
स वाग्वज्रो यजमानं हिनस्ति यथेन्द्रशत्रुः स्वरतोऽपराधात्।।"

अर्थात्- एक शब्द भी स्वर, वर्ण तथा अर्थहीन उच्चारण करने पर वाणीरूपी वज्र से यजमान को वैसे ही विनाश करता है जैसे इन्द्र ने कभी वृत्रासुर को मारा था। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर ही मैंने प्रस्तुत विधि का यथासाध्य शुद्ध एवं सर्वश्रेष्ठ संस्करण निकालने की चेष्टा की है।



 बगलामुखी साधना के प्रयोजन (उद्देश्य) 

मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, अनिष्ट ग्रहों की शान्ति, मनचाहे व्यक्ति का मिलन, धनप्राप्ति एवं मुकदमे में विजय प्राप्त करने के लिए इस स्तोत्र का पाठ, जप और अनुष्ठान शीघ्र फलदायक है।

जप का स्थान कैसा होना चाहिए 

शुद्ध, एकान्त स्थान या घर पर ही, पर्वत की चोटी, घनघोर जंगल, सिद्ध पाषाण-गृह अथवा प्रसिद्ध नदियों के संगम पर, अपनी सुविधानुसार रात्रि या दिन में, बगलामुखी का अनुष्ठान करे। पर एक वस्त्र और खुले स्थान का निषेध है। अर्थात् स्नान, सन्भ्योपासनादि नित्य-नैमित्तिक क्रियाओं से निवृत्त हो पीली धोती, दुपट्टा या गमछा लेकर जप करें। यदि खुला स्थान हो, तो ऊपर से कपड़ा या चॅदोवा वगैरह लगा लेना चाहिए। कहा भी है-

एकान्ते निर्जने रम्ये शुचौ देशे गृहेऽपि वा।
पर्वताग्ने महारण्ये सिद्धशैलमये गृहे।
सङ्गमे च महानद्यो निशायामपि साधयेत्॥

 अपि च-

नैकवासा न च द्वीपे नाऽन्तरिक्षे कदाचन।
श्रुति-स्मृत्युदितं कर्म न कुर्यादशुचिः क्वचित्॥

 बगलामुखी में उपयोगी वस्त्र तथा पुष्प

बगलामुखी के अनुष्ठान में सभी वस्तु पीली ही होनी चाहिए। जैसे-पीली धोती, दुपट्टा, हरदी की गाँठ का माला, पीला आसन, पीत पुष्प एवं पीत वर्णवाली बगलामुखी देवी में ही तल्लीन होने का विधान है। यथा भोजन- 

सर्वपीतोपचारेण पीताम्बरधरो नरः
जपमाला च देवेशि! हरिद्राग्रन्थिसम्भवा।
पीतासनसमारूढः पीतध्यानपरायणः।।

मध्याह्न में दूध, चाय, फलाहार आदि तथा रात्रि में हविष्यान्न, (केसरिया खीर, बेसन के लड्डू, दिया, पूड़ी, शाक आदि) ग्रहण करे।


बगलामुखी मंत्र

"ॐ ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।"

बगलामुखी जप-विधान

अनुष्ठानकर्ता को चाहिए कि, अपने बड़े-छोटे कार्य के अनुसार इस बगलामुखी मंत्र का एक लाख या दस हजार जप, २१दिन, ११दिन,९दिन या ७ दिन में करे। यदि पास में बगलामुखी देवी का मन्दिर हो, तो उसमें करे, अथवा किसी शुद्ध स्थान पर एक छोटी चौकी अथवा पट्टा (पीढ़ा) पर पीला वस्त्र बिछाकर, उस पर पीले चावल से अष्टदल कमल का निर्माण कर, उस पर बगलामुखी देवी का चित्र (फोटो) स्थापित कर आवाहन-पूर्वक गन्ध, पुष्प आदि षोडशोपचार से पूजन कर जप आरम्भ करे।

प्रथम दिन जितनी संख्या में जप करें उसी क्रम से प्रति दिन करना चाहिए। बीच में न्यूनाधिक करने से जप खण्डित हो जाता है। कहा भी है-

यत्संख्यया समारब्धं तत्कर्त्तव्यमहर्निशम्।
यदि न्यूनाधिकं कुर्याद् व्रतभ्रष्टो भवेन्नरः।।

बगलामुखी हवन 

हरिद्रा आदि युक्त पीत द्रव्यों से जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण,तर्पण का दशांश मार्जन एवं मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। इस प्रकार करने से साधक को निश्चय ही सिद्धि प्राप्त होती है। कहा भी है-

पीतपुष्पार्चनं नित्यमयुतं जपमाचरेत्।
तद्दशांशकृतो होमः पीतद्रव्यैः सुशोभनैः।।
तर्पणादि ततः कुर्यान्मत्र: सिद्ध्यति मंत्रिणः।।

विभिन्न कामनाओं के लिए बगलामुखी हवन-विधान 

बगलामुखी साधना करने के कोई भी कारन हो सकते हैं, लेकिन किस कामना के लिए कौनसे विधि से साधना करें यह निचे विधिवत लिखा गया है | अपनी आवश्यकता के अनुसार निर्देशित वस्तु से हवन करें|

स्तम्भन के लिए हवन

बगलामुखी मंत्र में शत्र का नाम तथा 'स्तम्भय स्तम्भय' पद जोड़कर दस हजार जप करने से शत्रु एवं उसकी गति का स्तम्भन होता है। तथा इस मंत्र के द्वारा बुद्धि,शस्त्र,देव-दानव एवं सर्प आदि का भी स्तम्भन होता है। जैसे-

'ॐ ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं मम अमुकनामकं शत्रुं स्तम्भय, स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा'

आकर्षण के लिए हवन

बित्तेभर का योनियुक्त तीन मेखला से सुशोभित सुन्दर कुण्ड की रचना कर, कुशकण्डिका आदि के साथ विधिविधान पूर्वक मधु, घी और शक्कर मिश्रित नमक से हवन करने पर सभी का आकर्षण निश्चय ही होता है। यह प्रयोग अनुभूत है। नमक में हरताल और हरिद्रा मिलाकर आहुति प्रदान करने से भी शत्रु की बुद्धि एवं गति का स्तम्भन होता है।

विद्वेषण (आपसी झगड़ा) के लिए हवन

तेल मिले हुए नीम की पत्ती द्वारा दशांश हवन करने से विद्वेषण (आपसी झगड़ा) होता है।

मारण के लिए हवन

रात्रि में चिता की अग्नि में सरसों का तेल और भैंस के रुधिर (खून) से हवन करने पर शत्रु का मारण होता है।

उच्चाटन के लिए हवन

शत्रु-उच्चाटन के लिए, गोध और कौवे के पंख से हवन करना चाहिए।

रोगशान्ति हेतु हवन

कुम्हार की चाक की मिट्टी, चार-चार अंगुल रेंड की लकड़ी और त्रिमधु (मधु, घृत, शक्कर) युक्त लाजा-द्वारा हवन करने से समस्त रोगों की शान्ति होती है।

वशीकरण हेतु हवन

बगलामुखी मंत्र जप करने से पश्चात् सरसों से  दशांश हवन करने पर साधक सबको नि:सन्देह वश में कर लेता है।

यथेच्छ धन-प्राप्ति हेतु हवन

दूध मिश्रित तिल एवं चावल द्वारा हवन करने से निश्चय ही धन-प्राप्ति होती है।

संतान प्राप्ति हेतु हवन

अशोक और करबीर के पत्र द्वारा हवन करने से संतान-प्राप्ति होती है, यह प्रयोग अनुभूत है।

शत्रु पर विजय हेतु हवन

शत्रु पर विजय-प्राप्ति के लिए साधक को चाहिए कि वह सेमर के फूलों से हवन करे।

राजा का वशीकरण हेतु हवन

गुग्गुल और घी से हवन करने पर बहुत काल तक राजा वश में रहता है।

कारागार से बन्दी की मुक्ति हेतु हवन

गुग्गुल और तिल द्वारा हवन करने से निश्चय ही कैदी कारागार से छूट जाता है।

निष्कर्ष

बगलामुखी साधना के इस संक्षिप्त परिचय में आपने सीखा बगलामुखी साधना के प्रयोजन, जप का स्थान, वस्त्र तथा पुष्प विचार, जप विधान तथा हवन विधान के बारे में आगे और भी बहोत सी बातें हैं जिसे हम आगे समझनेवाले हैं| यदि आपको इस तरह की जानकारी पसंद है तो हमे सब्सक्राइब जरूर करें |

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||जय श्री राधे ||

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