शिव ताण्डव स्तोत्रम् | Shiv Tandav Stotram Lyrics

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शिव ताण्डव स्तोत्रम् | Shiv Tandav Stotram Lyrics शिव ताण्डव स्तोत्रम् एक बार रावन ने अहंकार वश कैलाश पर्वत को अपने हाथो से उठाकर लंका ले जाना चाहा और पर्वत को उठाने  लगा, लेकिन महादेव रावन के इस व्यव्हार से खुश नही हुए और उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से कैलास पर्वत को दबा दिया | अब होना क्या था कैलास फिर से अपने अवस्था में आगया, जिसमे रावन कादोनों हाथ पर्वत के निचे दब गया | रवन दर्द से कराह उठा ! और भगवन भोले नाथ की स्तुति करने लगा | जिसे हम " शिव तांडव स्तोत्रम्" के रूप जाना जाता हैं  





जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्। 
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं 
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।

अन्वयः - यः जटाटवीगलज्जलप्रवाह-पावितस्थले-गले लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् अवलम्ब्य डमड् - डमड् - डम - निनाद्वत् डमर्वयं चण्ड-ताण्डवं चकार (स) शिवः नः शिवं तनोतु।।

भावार्थ -  जिस (भगवान शिव) ने अपने जटारूपी जंगल से निकलती हुई गंगा जी के प्रवाह से पवित्र किए गये गले में सर्पो की विशाल माला को धारण करते हुए डमरू के डम-डम शब्दों से युक्त प्रचण्ड ताण्डव (उद्धतनृत्य) किया, वे शिवभगवान् हमारे कल्याण का विस्तार करें। 

Who wears a huge necklace of serpents around his neck that has been made pure (sanctified) by the flow of the Ganga that emerges from his forest-like knot of matted hair, and who dances the fierce tandava dance to the 'dum-dum' sound of the damaru,' that Shiva may increase our good fortune.


जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी 
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्द्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके 
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम।।

अन्वयः - जटा-कटाह-सम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-विलोलवी चिवल्लरी - विराजमानमूर्धनि धगद् - धगद् - धगज्ज्वलल् - ललाटपट्ट-पावके किशोर-चन्द्रशेखरे प्रतिक्षणं मम रतिः (भवतु)।

भावार्थ -  जिसका सिर, जटारूपी कड़ाह में तेजी से घूमती हुई गङ्गा के प्रवाह की चञ्चल तरङ्ग-समूहों से सुशोभित है, जिसके ललाट में रहने वाली (तृतीय नेत्र की) अग्नि धक् धक् जल रही है, जिसके मस्तक पर बालचन्द्रमा विराजमान है, ऐसे उस भगवान् में मेरा प्रेम सदा बना रहे।

Whose head is made beautiful by the playful waves which arise from the swift flow of the Ganga in the knot of matted hair, in whose forehead the fire of his third eye burns, in whose head the new moon resides, to that God, may I always remain devoted


धराधरेन्द्रनन्दिनी-विलासबन्धुबन्धुर 
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे । 
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि 
कृचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि।।

अन्वयः - धराधरेन्द्र - नन्दिनी - विलास - बन्धु - बन्धुर - स्फुरद्दिगन्तसन्तति - प्रमोदमानमानसे कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे वस्तुनि (मे) मनः विनोदम् एतु।

भावार्थ -हिमालय की पुत्री पार्वती के विलास काल में सहायक लहरदार शिरोभूषण के द्वारा समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देखकर जिनका मन प्रसन्न हो रहा है, जिनकी कृपा दृष्टि से कठिन आपत्ति भी रुक जाती है, ऐसे उस दिगम्बर भगवान में मेरा मन आनन्द प्राप्त करे।

May my mind rejoice when I think of Lord Shiva whose clothes are the directions, whose mind rejoices when he sees the quarters brightly illumined by the ornaments whose radiance becomes enhanced during dalliance and whose compassionate glances are capable of counteracting the worst of distress!


जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा 
कदम्बकुङ्कमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे 
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि।।



अन्वयः - जटा-भुजङ्ग-पिङ्गलस्फुरत्फणा-मणि-प्रभाकदम्ब कुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे मदान्ध - सिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे भूतभर्तरि (मे) मनः अद्भुतं विनोदं  बिभर्तु।

भावार्थ - जिनकी जटाओं में लिपटे सर्पो के फणों की मणियों का चमकता हुआ पिङ्गलवर्ण का प्रभा-समूह, दिशारूपी वधू के मुखपर कुङ्कुमराग का लेप कर रहा है, मतवाले हाथी के चर्म का हिलता हुआ उत्तरीय (अङ्गवस्त्र) धारण करने से स्निग्धवर्ण वाले उन भूतनाथ में मेरा मन अद्भुत आनन्द प्राप्त करे।

May my mind rejoice greatly when I think of Lord Shiva (Lord of creatures) in whose knot of hair are entangled snakes whose hoods glorified by jewels emit a saffron glow that reddens the quarters that resemble the face of a bride, who is lustrous because he wears an 'angavastra' made of the skin of a tusker in a rut. 



सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर - 
प्रसूनधूलिधोरणीविधूसराज्रिपीठभूः । 
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः 
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः।।


अन्वयः - सहस्रलोचन - प्रभृत्यशेषलेख-शेखर - प्रसूनधूलिधोरणी- विधूसर-अध्रिपीठभूः भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः चकोरबन्धुशेखरः (मम) चिराय श्रियै जायताम्।


भावार्थ - जिनकी चरण-पादुका इन्द्र आदि समस्त देवों के सिर की शोभा बढ़ाने वाले पुष्पों के पराग से अत्यन्त मलिन है, वासुकी सर्प की माला से बँधी हुई जटा वाले वे भगवान् शिव मुझे चिरस्थायी सम्पत्ति दें। 

Whose sandal is soiled with the nectar of flowers that increases the beauty of the heads of Indra and all the other gods, whose knot of hair is tied with the garland of the lordly serpent, Vasuki - may that Lord Shiva give me long-lasting prosperity. 


ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा 
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् । 
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं 
महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु नः।।


अन्वयः - ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकं सुधामयूख- लेखया विराजमानशेखरं महाकपालि जटालं शिरः नः सम्पदे अस्तु।


भावार्थ - जिसने ललाटवेदी पर प्रज्वलित अग्नि की चिंगारियों के तेज से कामदेव कल्पलता को भस्म कर दिया, जिसे देवनायक इन्द्र नमस्कार करते हैं, सुधांशु (चन्द्र) की कला से सुशोभित मुकुटवाला, विशाल ललाट वाला, घनी जटाओं से युक्त, वह मस्तक हमारी सम्पत्ति का साधक बने। 

The one who destroyed Kamadeva with the glow of the sparks from the fire that burns in his forehead, who is saluted by Indra, the leader of gods, whose head-gear is made beautiful by a part of the moon, who has a broad forehead and dense locks, may that head (of Shiva) help bring us prosperity.


करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल - 
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके । 
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक - 
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम।।

अन्वयः - कराल - भालपट्टिका - धगद् - धगद् - धगज्ज्वलद् धनञ्जयाहुतीकृत - प्रचण्ड - पञ्च - सायके धराधरेन्द्रनन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक-प्रकल्पने एकशिल्पिनि त्रिलोचने मम रतिः (भूयात्) ।

भावार्थ - जिन्होंने अपनी विकराल भालपट्टिका पर धक्-धक् जलती हुई अग्नि में प्रचण्ड कामदेव का हवन कर दिया था, हिमालय की पुत्री पार्वती के स्तनों पर पत्रावली रचना के एकमात्र शिल्पी उन भगवान् त्रिलोचन में मेरी अनुरक्ति बनी रहे। 

May I remain devoted to Lord Shiva (who has three eyes), who sacrificed Kamadeva in the fire that burned on his forehead and who is the one and only engraver of the figures on the breasts of Paravati, the daughter of Himalaya.

नवीनमेघमण्डली-निरुद्धदुर्धरस्फुर - 
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
 निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः 
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगधुरन्धरः।। 

अन्वयः - नवीन - मेघमण्डली - निरुद्ध - दुर्धर - स्फुरत् - कुहूनिशीथिनी - तमः - प्रबन्ध - बद्धकन्धरः निलिम्पनिर्झरीधरः कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः जगधुरन्धरः (नः) श्रियं तनोतु।

भावार्थ - जिनके कण्ठ में नवीन मेघ समूह से घिरी हुई अमावस्या की मध्यरात्रि के समय फैले हुए अन्धकार की श्यामता बनी है; जो गजचर्म धारण किये हुए हैं, वे संसार के भार को धारण करने वाले, चन्द्रमा की स्थिति से मनोहर कान्ति वाले भगवान् गङ्गाधर मेरी सम्पत्ति का विस्तार करें। 

Whose neck is black like the darkness that comes about when a new chain of clouds surround the mid-night which has no moon, who wears the skin of an elephant, who bears the burden of the world, who is charmingly lustrous because of the presence of the moon, may that Lord Shiva (bearer of the Ganga) increase my prosperity.

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा - 
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम। 
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं 
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे।।

अन्वयः - प्रफुल्ल - नीलपङ्कज - प्रपञ्च - कालिमप्रभावलम्बि कण्ठ- कन्दलीरुचिप्रबद्ध - कन्धरं स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदंगजच्छिदान्धकच्छिदंतम्अन्तकच्छिदं भजे। 

भावार्थ - जिनका कण्ठ प्रफुल्ल नीलकमल समूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करने वाले हिरण की जैसी छवि से सुशोभित है, तथा जो कामदेव, त्रिपुरासुर, संसार, दक्षयज्ञ, गजासुर, अन्धकासुर और यमराज का भी विनाश करने वाले हैं, उनको मैं भजता हूँ। 

I worship him whose neck vies with that of a deer in charm, which is similar to the dark glow of a cluster of blooming blue lotuses and who is capable of destroying Kamadeva, Tripura, Sansara, Daksha Yagya, Gajasura, Andhakasura, and Yamaraja.

अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी 
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् । 
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं 
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे।।

अन्वयः - अखर्व-सर्वमङ्गला-कलाकदम्बमञ्जरी-रसप्रवाहमाधुरी-विजृम्भणा-मधुव्रतं स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तम् अन्तकान्तकं भजे। 

भावार्थ - जो दर्प रहित पार्वती की कला रूपी कदम्ब मञ्जरी की मकरन्दधारा की माधुरी का पान करने वाले मधुप हैं तथा कामदेव, संसार, त्रिपुरासुर गजासुर, अन्धकासुर, और यमराज का अन्त करने वाले हैं, उनको मैं भजता हूँ|

I worship him who enjoys the essence of Paravati's prideless beauty in the same way as a bee enjoys the essence of a lotus and who is the destroyer of Kamadeva, worldly ties, Tripurasura, Daksha-Yagya, Gajasura, Andhakasura, and Yamaraja. 


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जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भजङ्गमश्वस - 
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्। 
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल 
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः।।

अन्वयः - अदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गम - श्वसविनिर्गमत्क्रम  स्फुरत् - कराल - भाल - हव्यवाट् धिमिद् - धिमिद् धिमिद् - ध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्गमङ्गल - ध्वनि- क्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः जयतु।

भावार्थ - जिनके मस्तक पर तीव्र वेग के साथ घूमते हुए सर्प की फुफकार से ललाट की भयानक अग्नि क्रमशः प्रज्वलित होती हुई निकल रही है। धिमिद्-धिमिद् बजते हुए मृदङ्ग के उत्कृष्ट मङ्गल-घोष के क्रम से जिनका प्रचण्ड ताण्डव हो रहा है, उन भगवान शिव की जय हो। 

Praise to the Shiva whose forehead-fire starts burning regularly due to the quickly moving snakes' hissing, who dances the tandava' dance to the auspicious beat of the 'Mridanga'.

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो 
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
 तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः 
समप्रवृत्तिकः कदासदाशिवं भजाम्यहम्।। 

अन्वयः - दृषद्-विचित्रतल्पयोः,भुजङ्ग-मौक्तिकस्रजोः,गरिष्ठरत्न लोष्ठयोः,सुहृद्-विपक्ष-पक्षयोः, तृण-अरविन्दचक्षुषोः, प्रजा - महीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः अहं कदा सदाशिवं भजामि।। 

भावार्थ - पत्थर और अद्भुत शय्या में, सर्पमाला एवं मुक्तामाला में, श्रेष्ठरत्न और मिट्टी के ढेले में, मित्रपक्ष और शत्रुपक्ष में, तृण एवं कमललोचना तरुणी में, प्रजा और राजा में समान भाव वाला होकर मैं कब सदाशिव को भजूँगा? 

When I, while considering a bed of stones and silk alike, a garland of snakes and pearls alike, the best of jewels and a blob of mud alike, a camp of friends and foes alike and grass and a beautiful woman alike, will be able to worship and praise Lord Shiva.

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् 
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् । 
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः 
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्।।

अन्वयः - ललामभाललग्नकः निलिम्प - निर्झरी- निकुञ्जकोटरे वसन्, विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरस्थमञ्जलिं वहन्, विलोललोललोचनः 'शिव'-इति मन्त्रम् उच्चरन्, अहं कदा सुखी भवामि। 

भावार्थ - सुन्दर भाल वाले भगवान् शिव में लीन होकर, अपनी दुर्मति का त्यागकर, गङ्गाजी के तटवर्ती निकुञ्ज के भीतर रहता हुआ, सिर पर हाथ जोड़कर निश्चल दृष्टि से 'शिव' नाम मन्त्र का उच्चारण करता हुआ, मैं कब सुखी होऊँगा ? 

When will I be having the joy of devoting myself to Lord Shiva with a beautiful spear, having left off my evil passions, has taken residence in a grove near the Ganga, folding my hands above my head and reciting the name of Lord Shiva with a fixed mind?

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं 
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम्।
हरे गुरौ स भक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं 
विमोहनं हि देहिनां तु शङ्करस्य चिन्तनम्।।

अन्वयः - (यः) नित्यमेव उक्तम् इमम् उत्तमोत्तमं स्तवं हि पठन् स्मरन् ब्रुवन् (भवति) स नरः सन्ततं विशुद्धिम् एति, आशु हरे गुरौ सुभक्तिं याति, अन्यथागतिं तु न (याति)। शङ्करस्य चिन्तनं देहिनां विमोहनं हि (करोति)।

भावार्थ - जो मनुष्य इस भाँति से उक्त इसी उत्तमोत्तम स्तोत्र का नित्य पाठ, स्मरण और वर्णन करता है, वह सदा विशुद्ध रहता है और अतिशीघ्र ही श्रेष्ठ शिवजी की अच्छी भक्ति प्राप्त कर लेता है। वह विपरीत स्थिति को नहीं प्राप्त होता है, क्योंकि शिवजी का चिन्तन मुनष्यों के मोह का नाश ही करता है। 

Whoever recites, memorizes, and describes this stotra regularly in this way always remains pure and soon attains the bhakti of the great Lord Shiva. He does not fall prey to wrong paths because meditating of Lord Shiva kills ignorance in human.

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पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं ,
यः शम्भुपूजनमिदं पठति प्रदोषे।
 तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां, 
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः।।

अन्वयः - यः प्रदोषे पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं शम्भुपूजनपरम् इदं स्तोत्रं पठति, शम्भुः तस्य रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां स्थिरां सदैव सुमुखीं (च) लक्ष्मी प्रददाति।।

भावार्थ - सायंकाल में पूजा की समाप्ति होने पर रावण के द्वारा गाये हुये शम्भु पूजा से सम्बन्धित इस "शिव ताण्डव स्तोत्रम्"  का जो पाठ करता है, भगवान् शम्भु उस भक्त को रथ, श्रेष्ठ हाथी तथा घोड़ों से युक्त स्थिर तथा अनुकूल रहने वाली लक्ष्मी प्रदान करते हैं। 

Whoever recites these verses sung by Ravana as he was praying Shambhu, in the evening after finishing his prayers, Lord Shiva bestows such bounties upon him like chariots, the best of elephants and horses, and ever - staying and auspicious Lakshmi.


( इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम्। )



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